मंगलवार, 22 नवंबर 2016

वाक्य विचार

वाक्य विचार 

वाक्य का अर्थ-

शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में शब्दों का वह समूह जिससे कहने और सुनने वाले का अभिप्राय समझ में आ जाए, वाक्य कहलाता है।जैसे-

विकास, तुम कहाँ जा रहे हो?
जल ही जीवन है।
सदा सच बोलो।
एक गिलास पानी लाओ। 

वाक्य के आवश्यक तत्व- 

वाक्य के छः तत्व हैं - 

1. सार्थकता
2. आकाँक्षा
3. निकटता
4. योग्यता
5. क्रमबध्दता
6. अन्वय
1. सार्थकता- वाक्य में सार्थक पदों का प्रयोग होना चाहिए।  निरर्थक पदों से वाक्य का अभिप्राय स्पष्ट नहीं हो पाता।जैसे- 
मुझे अपनी मातृभूमि से प्यार है
 यह एक सार्थक पदों से युक्त वाक्य है , जिसका अभिप्राय स्पष्ट है।

2. आकाँक्षा- वाक्य ऐसा होना चाहिए जिसे पढ़ने या सुनने के बाद कुछ और जानने की इच्छा न हो। 
जैसे- खाता है। 
इस पद समूह से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि क्या कहा जा रहा है। भोजन की बात  कही जा रही है या किसी बैंक के खाते के बारे में कहा जा रहा है। अतः यह वाक्य की श्रेणी में नहीं आएगा।  

3. निकटता- पदों के मध्य एक समान दूरी होनी चाहिए। दूरी की असमानता से वाक्य का अभिप्राय स्पष्ट नहीं हो पाता । जैसे- मेरा                         गाँव                         घाटियोंके          बीच            बसाहै। इस वाक्य में पदों के मध्य की दूरी आसमान है। जिससे वाक्य का अर्थ ग्रहण करने में कठिनाई हो रही है।  जबकि इसे इस तरह लिखा जाना चाहिए - मेरा गाँव घाटियों के बीच बसा है।      

4. योग्यता- वाक्य की सार्थकता उसके पदों में प्रयुक्त शब्दों की योग्यता पर निर्भर करता है। किसी वाक्य में पद प्रकृति विरुध्द न हो और सर्वमान्य सत्य के विरुध्द न हो।

5. क्रम्बध्दता- वाक्य में पदों का क्रम निश्चित होता है। जैसे- (i) कर्ता+ क्रिया या कर्त्ता +पूरक+क्रिया
       (ii) कर्त्ता+ कर्म+क्रिया या कर्त्ता+कर्म+पूरक+क्रिया जैसे - मैं विद्यालय पढ़ने जाता हूँ।  मेरे पास एक पेन है

6. अन्वय- वाक्य में क्रिया के साथ विभिन्न पदों का सम्बन्ध होना चाहिए। दूसरे शब्दों में वाक्य में लिंग,  पुरुष,वचन, कारक, काल और वाच्य आदि का मेल होना चाहिए। जैसे - "लड़की जाता है।" के स्थान पर "लड़की जाती है।" होना चाहिए। 

वाक्य के अंग

वाक्य के दो अंग हैं- (i) उद्देश्य  (ii) विधेय

(i) उद्देश्य- वाक्य में जिसके बारे में कहा जाय, उसे उद्देश्य कहते हैं। वाक्य में कर्ता को ही उद्देश्य कहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उद्देश्य के साथ आने वाले पदों को उद्देश्य का विस्तार कहा जाता है। जैसे- विवेक पढ़ता है |  यहाँ 'विवेक' उद्देश्य है 
लोभी मनुष्य कभी सुखी नहीं होता।
इस वाक्य में उद्देश्य  (कर्ता) 'मनुष्य ' है, उद्देश्य का विस्तार 'लोभी' है।

(ii) विधेय- कर्ता के बारे में जो कहा जाता है, विधेय कहलाता है और विधेय के साथ आने वाले पदों को विधेय का विस्तार कहते हैं।
उदाहरण-  विवेक पढ़ता है । इस वाक्य में 'पढ़ता है ' विधेय है। 
लोभी व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता। 
इस वाक्य में विधेय 'नहीं होता' है तथा विधेय का विस्तार ' कभी सुखी' है। 

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